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हमारा इतिहास

प्राचीनता से नवीनता की और कदम बढ़ाती मानवजाति से सम्बन्धित घटनाओं के वर्णन को इतिहास कहते हैं। हर संस्था की तरह प्रतिभास्थली का भी अपना एक अनोखा इतिहास है, जो संस्कृति के महामनीषी दिगम्बराचार्य 108 विद्यासागरजी महाराज के द्वारा रचा गया है।

शिक्षा के क्षेत्र में गहराते सघन अंधकार को मिटाने विद्या सूर्य ने अपनी रश्मियों को तेजस्वी बनाया और 30 जून, 2006 को नर्मदा के पावन तट तिलवारा घाट पर इस वसुंधरा की अप्रतिम कृति ,प्राचीन व आधुनिक संस्कृति की संवाहक प्रतिभास्थली का सृजन कर अपने दिव्य प्रकाश से हृदय के गहनतम अँधेरे कोनों में प्रकाश भरना आरम्भ कर दिया।

प्रतिभास्थली तब से अब तक अनवरत रूप से सफलताओं के पायदानों पर कदम बढ़ाते हुए उच्च शिखर को छूने के लिए प्रयास रत है। इस विद्यालय का प्रारम्भ मात्र 40 बालिकाओं की दो कक्षाओं छठवी तथा सातवीं से हुआ था। आज विद्यालय में 4 से 12 वी तक की कक्षाओं में 750 छात्राएँ अध्यनरत हैं।

इसी परम्परा को अग्रिम गति प्रदान करने हेतु दिनांक 3 दिसम्बर 2012 में छत्तीसगढ़ (चन्द्रगिरि) में और 4 फरवरी 2014 में महाराष्ट्र (रामटेक) में प्रतिभास्थली ज्ञानोदय विद्यापीठ की स्थापना हुई।

प्रतिभास्थली की श्रृंखला में 21 अप्रैल 2018 से गुरुजी के संयम स्वर्ण महोत्सव के अवसर पर दो नाम और जुड़ गए। एक प्रतिभास्थली इंदौर और दूसरी प्रतिभास्थली पपौरा जी, जो अब गुरूजी के आशीर्वाद से ललितपुर शहर के आंगन में स्थानांतरित हो चुकी है।

आगे भविष्य के गर्भ में छुपे अनगिनत शिक्षा संस्थान आचार्यश्री के मनोभावों के अनुरूप आकार पाते रहेंगे।