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परिचय

विद्यालय व्यक्ति के सर्वांगीण विकास, सामाजिक राष्ट्रीय प्रगति तथा सभ्यता व संस्कृति के उत्थान के केन्द्र होते है, ऐसे अनेक विश्व प्रसिद्ध शिक्षा केन्द्र भारत भूमि पर संचालित थे, ज्ञान-दान की सुन्दर, सुदृढ़ व्यवस्था गुरुकुलों के प्राकृतिक परिसरो में संचालित होती थी। ज्ञानी, ध्यानी तपस्वी, कला कौशल में निपुण गुरुओं के मार्ग दर्शन में शिष्य-शिष्यायें अपने में छुपी अनंत संभावनाओं को प्रकट करते थे, उसी गुरुकुल व गुरु-शिष्य परम्पराओं की परछाई है "प्रतिभास्थली"।

प्रतिभास्थली जैनाचार्य 108 विद्यासागरजी महाराज की असीम कृपा और दूरदृष्टि से पल्लवित पुष्पित व फलित भारत-भर में अनूठा व अद्वितीय कन्या आवासीय शिक्षण संस्थान है। यहाँ शिक्षा अर्थोपार्जन का साधन नहीं अपितु ज्ञान-दान की पावन प्रक्रिया है। यहाँ बालब्रह्मचारिणी विदूषी, प्रशिक्षित शिक्षिकायें कन्याओं के उज्जवल भविष्य के निर्माण हेतु अपनी निस्वार्थ सेवायें अहर्निश प्रदान कर रहीं है। सी. बी. एस. ई. मान्यता प्राप्त यह संस्थान आज के आधुनिक परिवेष में प्राचीन गुरुकुलों की स्मृति को पुनः जीवंत कर रहा है।

‘‘यहाँ शिक्षा का लक्ष्य जीवन का निर्वाह नहीं निर्माण है।’’

परम पूज्य १०८ दिगम्बराचार्य
संत शिरोमणि,
समाधि सम्राट, चारित्र चक्रवर्ती
आचार्य परमेष्ठी
विद्यासागरजी महामुनिराज

मनुजो मानवो भूयात् ।
भारत: प्रतिभारत:॥

मनुष्य बुद्धि व गुणों के विकास और संस्कारों के संवर्धन से मानव बने और भारत प्रतिभा में निमग्न हो।

  • स्वस्थ तन
  • स्वस्थ मन
  • स्वस्थ वचन
  • स्वस्थ धन
  • स्वस्थ वन
  • स्वस्थ वतन
  • स्वस्थ चेतन

दिनांक 18 फरवरी सन् 2004 में जबलपुर, पुण्य सलिला नर्मदा के पावन तट तिलवारा घाट पर आचार्यश्री 108 विद्यासागरजी महाराज चतुर्विध संघ सानिध्य में प्रतिभास्थली का शिलान्यास किया गया।