आओ और सीखें
नृत्य
“कला” कन्या का आभूषण है जो उसकी सुन्दरता को श्रृंगारित करती है । प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति ‘कला की पोषक’ रही है । युग के आदि में आदिनाथ भगवान ने अपनी कन्याओं को 64 कलाओं में पारंगत किया तभी से इस परम्परा का अक्षुण्ण गति से निर्वहन किया जा रहा है । 64 कलाओं में ‘नृत्यकला’ एक अनोखी कला है । दक्षिण भारत में पट्टमहादेवी शांतला द्वारा निर्मित वेल्लूर का मंदिर ‘नृत्य अभिनय कला’ का अद्भुत नमूना हैं ।
नृत्य कला जहाँ मनोरंजन, ज्ञानवर्धन, भक्ति, अभिव्यक्ति, प्राचीनता और संस्कृति की परिचायक है वहीं यह आजीविका का भी प्रबल साधन हैं ।
इसी अनुपम नृत्यकला का ज्ञान प्रतिभास्थली में प्रत्येक वर्ग की छात्रा को दिया जाता है ताकि भविष्य में वह इस कला का उपयोग दूसरों को ज्ञान बाँटने में कर सके और भारतीय संस्कृति की विरासत को आने वाली पीढ़ी तक पहुंचा सके ।