विद्यालय प्रांगण

बाल क्रीडांगण

खेल शारीरिक स्वास्थ्य के साधन तो हैं ही साथ ही मानसिक, बौद्धिक, सामाजिक व आध्यात्मिक चेतना को जागृत करने का भी एक प्रबल सहारा होते हैं ।

बचपन से लेकर पचपन तक सभी को खेल प्रिय होते हैं । सच कहो तो खेलते-कूदते, गिरते-पड़ते ही बालक का सहज विकास होता है ।

वैसे तो बालक को खेलने के लिए खेल मैदान की जरूरत नहीं होती, कोई भी गली, मोहल्ला, चौराहा उनकी रूचि के अनुसार खेल का मैदान बन जाता हैं किन्तु अनुशासन खेलों का प्रथम नियम हैं और अनुशासन के साथ खेल खेलने के लिए मैदान की आवश्यकता होती है ।

विद्यालय परिसर में छात्राओं को खेलने के लिए दो-दो विशाल क्रीडांगण हैं, जहाँ नियमित खेल-कूद द्वारा छात्राओं में अनुशासन, मर्यादा, एकता, प्रेम, सौहार्द, सामंजस्य जैसे मानवीय गुणों का विकास होता हैं ।