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गुरु-शिष्य परम्परा - शिक्षक दिवस

गुरु-शिष्य परम्परा - शिक्षक दिवस

सरस्वती के मंदिर का पुजारी है - शिक्षक। शिक्षा सूत्रों को संस्काररूपी धागे में पिरोकर शिक्षार्थी के जीवन के ताने-बाने को बुनने वाला सफल साधक है - शिक्षक। इतना ही नहीं शिक्षार्थी के जीवन में सृजन के बीज बोने वाला कुशल सृजेता भी है - शिक्षक। एसे समर्पित शिक्षकों की गौरव गाथा पर आधारित कार्यक्रमों की भव्य प्रस्तुति के साथ प्रतिभास्थली ज्ञानोदय विद्यापीठ में शिक्षक दिवस बड़ी धूमधाम से मनाया गया।
प्रकृति की गोद में बसी प्रतिभास्थली के आँगन में प्राकृतिक परिवेश में पली -बढ़ी छात्राओं के जीवन में शिक्षकों की भूमिका पर आधारित आकर्षक प्रस्तुति ने प्रतिभास्थली परिवार का मनमोह लिया।
 
 
 
 

 
प्राचीन गुरु-शिष्य परम्परा का निर्वहन करते हुए प्रतिभास्थली की छात्राओं ने शिक्षक दिवस पर दी रंगा-रंग प्रस्तुतियाँ ।

‘समर्पण’ गुरु और शिष्य के बीच की वो कड़ी है, जो शिष्य को गुरुचरणों में समर्पित कर देती है और गुरु को शिष्य के जीवन-निर्माण में अग्रसर कर देती है । प्रतिभास्थली की छात्राओं द्वारा इन पावन संबंधो को अपनी बाल सुलभ कल्पनाओं से मंच पर मंचित करने का सफल प्रयास हुआ । उनकी चेतना को झंकृत देख शिक्षिकाओं का मन प्रफुल्लित हुआ ।