विद्यालय प्रांगण
जिनालय
जिनेन्द्र भगवान के पवित्र स्थान को जिनालय की संज्ञा दी जाती है । ऋषि मुनियों की तपस्थली पुण्य वर्गणाओं के अर्जन का केन्द्रस्थल, मानव की शारीरिक साधना व अध्यात्मिक भावना के विकास के पवित्र स्थल का नाम है ‘मंदिर’ । मंदिर में विराजमान प्रभु मनुष्य की अन्तरंग चेतना को झंकृत करने वाले ऐसे प्रकाश पुंज हैं जिनके प्रकाश से प्रकाशित आत्माओं को परमात्मा बनने का मार्ग प्रशस्त होता है।
किसी ने कहा है कि “जब मंदिर से मंदिर का देवता ही चला जाए तो वह मंदिर, मंदिर नहीं पत्थर का स्मारक मात्र रह जाता है।” इसीलिए बालिकाओं के मृदुल ह्रदय में सहजता, पवित्रता, मृदुता, निर्मलता और शुद्धता का कमल खिलाने तथा भारतीय संस्कृति की धार्मिक परम्परा को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए विद्यालय परिसर में एक जिनालय है जिसमें प्रथम तीर्थंकर 1008 आदिनाथ भगवान की चतुर्थ कालीन खडगासन प्रतिमा विराजमान है।
दयोदय का ये पवित्र जिनालय विशाल प्रांगण से सुशोभित हैं। जहाँ 800 बालिकाएं एक साथ बैठकर एक स्वर, एक ताल और एक संगीत के साथ सुबह-शाम भक्ति रस में डूब कर अर्चन, पूजन आदि का आनंद लेते हैं।