सरस्वती मंदिर
वैसे तो अनुभव ही शिक्षा हैं । घर के खुले वातावरण में हम अपने से बड़ों व आस-पास के लोगों के बीच रह कर जो कुछ सीखते हैं, जो कुछ अनुभव करते हैं उसी का नाम सही रूप में शिक्षा हैं, जिसे अनौपचारिक शिक्षा का नाम दिया जाता हैं किन्तु भौतिकता से परिपूर्ण इस दुनिया में कुछ औपचारिकता निभाए बिना गन्तव्य तक पहुँचना अति दुर्लभ हैं ।
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आज अनुभव का नहीं ज्ञान का जमाना हैं इसीलिए ज्ञान का खजाना प्राप्त करने के लिए वनों की नही भवनों की आवश्यकता पड़ती हैं उन भवनों का नाम हैं विद्यालय भवन अथवा सरस्वती मन्दिर । यहाँ प्राप्त शिक्षा को औपचारिक शिक्षा कहते हैं ।
प्राचीन व वर्तमान व्यवस्थाओं के अनुसार प्रतिभास्थली ज्ञानोदय विद्यापीठ में जहाँ एक ओर प्रकृति की गोद में अनौपचारिक रूप से विद्याअध्ययन कराया जाता हैं, वहां सरस्वती भवनों के अंदर औपचारिक रूप से विद्याअध्ययन भी कराया जाता हैं ।
यहाँ आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित दो-दो विद्यालय भवन हैं जिन्हें सरस्वती मन्दिर की उपमा दी जाती हैं । प्राथमिक व माध्यमिक विद्यालय भवन व उच्च शिक्षा विद्यालय भवन ।
सरस्वती के इन मंदिरों में पुस्तकालय, प्राचार्य कक्ष, अनेक कक्षा कक्ष, दृश्य-श्रव्य कक्ष, योग कक्ष, भौतिकीविज्ञान, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान व कम्प्यूटर प्रयोगशालाएँ, पाक शालाएं, खेल कक्ष, सिलाई कक्ष, नृत्य व संगीत कक्ष स्थित हैं जहाँ शाला अवधि के दौरान छात्राओं को पढ़ाई के साथ-साथ अन्य कलाओं में भी पारंगत किया जाता हैं ।
छात्राओं के सर्वतोन्मुखी विकास को दृष्टि में रखते हुए यहाँ विषय शिक्षिकाओं के अतिरिक्त पाठ्य सहगामी गतिविधिओं में दक्ष अनेक शिक्षिकाएँ अध्यापनरत हैं । यहाँ की शिक्षिकाएँ एम.एड., एम.एस.सी., एम.ए., एम.कॉम., कम्प्यूटर कोर्स आदि अनेक डिग्री की धारक हैं ।
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